दर्द से कराहती , कोख को संभालती,
गिरती संभलती, एक गमजदा औरत,
तेज कदमों से ,अनजान रास्ते से ,
कहीं चली जा रही थी,
दुकान चल रहे थे, मकान जल रहे थे,
मजहब के नाम पर ,इंसान जल रहे थे,
एक अनजान दरवाजा,एक बेसुध पड़ी औरत,
हर तरफ खामोशी, हर तरफ सन्नाटा,
सन्नाटे को चीरती एक बच्चे की किलकारी ,
सीता के हाथों में मोहम्मद ,
आमिना के आंखों में मुस्कुराते आंसू ,
नफरत फैलाने वालों को अमन का पैगाम दे रहे थे.
- फ़ैज़ शाकिर
गिरती संभलती, एक गमजदा औरत,
तेज कदमों से ,अनजान रास्ते से ,
कहीं चली जा रही थी,
दुकान चल रहे थे, मकान जल रहे थे,
मजहब के नाम पर ,इंसान जल रहे थे,
एक अनजान दरवाजा,एक बेसुध पड़ी औरत,
हर तरफ खामोशी, हर तरफ सन्नाटा,
सन्नाटे को चीरती एक बच्चे की किलकारी ,
सीता के हाथों में मोहम्मद ,
आमिना के आंखों में मुस्कुराते आंसू ,
नफरत फैलाने वालों को अमन का पैगाम दे रहे थे.
- फ़ैज़ शाकिर
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