जालिम के खिलाफ लब खोलूं
या सब की तरह खामोश रहूं,
महबूब के दर पर अश्क बहऊं,
या मजलूमों की आवाज बनूं,
आसान लफ्जों में नज़म लिखूं
या कठिन शब्दों का इस्तेमाल करूं.
– फैज शाकिर
या सब की तरह खामोश रहूं,
महबूब के दर पर अश्क बहऊं,
या मजलूमों की आवाज बनूं,
आसान लफ्जों में नज़म लिखूं
या कठिन शब्दों का इस्तेमाल करूं.
– फैज शाकिर
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