Sunday, 17 September 2017

सब की तरह

जालिम के खिलाफ लब खोलूं
या सब की तरह खामोश रहूं,
महबूब के दर पर अश्क बहऊं,
या मजलूमों की आवाज बनूं,
आसान लफ्जों में नज़म लिखूं
या कठिन शब्दों का इस्तेमाल करूं.
– फैज शाकिर

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