Sunday, 17 September 2017

अजनबी शहर में बर्मा के लोग

मुहब्बतों के दुश्मन, नफरतों के दोस्त
अजीब शहर अजीब लोग,
होठों पर मुस्कुराहट, दिल पर आना की काई
यह कैसा शहर यह कैसे लोग
लावारिस पानी में सहमे माओं के कोख
अजनबी शहर में बर्मा के लोग
छा जाएं काले बादल तो हो जुगनुओं का शोर
काश हो कोई ऐसा शहर, ऐसे हों लोग.
– फैज शाकिर

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