Sunday, 10 September 2017

आंखों में बिलकते लहू


आंखों में बिलकते लहू देख,
कातिल का खंजर थर थर कांप गया,
राज छुपाया जिसका मैंने दुनिया से,
उसी ने मुझे सरेआम बदनाम किया,
बर्फीली सर्दियों की एक रात जब ठंड
लगी मेरे महबूब को,
मेरा दिल जलाकर उसने अलाव ताप लिया,
मेरा हमसफ़र, मेरा हमनवा, जब मुझे बीच राह में छोड़ कर चला गया,
फिर भी ना जाने मैंने क्यों पटरियों पर बैठे बैठे उसका बहुत देर इंतजार
किया.
मानो मैं इंसान ना हुआ एक खिलौना हुआ
खेलते खेलते मुझसे उसने मुझको फिर से एक बार तोड़ दिया.
- फैज शाकिर

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