रोटी के बदले लोगों को जहाँ धर्म परोसे जाते हों ,
जहाँ लहू की बारिश होती हो,
जहाँ खून से गलियां लथपथ हों ,
हिन्दू मुस्लिम आपस में जहां अब भी लड़ते रहते हों,
इंसानों के गोश्त जहाँ हैवानों से भी सस्ते हों,
जहाँ सरकार गहरी नींद में सोइ हो ,
जहाँ जालिम तख्त पर बैठे हों,
जहाँ मजलूमों की खैर नहीं ,
जहाँ रात की कोई सहर नही ,
जहाँ पाँव से चिमटी जंजीरे हों,
जहाँ आवाजों पर पहरे हों,
ऐ अहल-ए-वतन अब झाँक कर मेरी आँखों में ,
बस इक बार कहो क्या आजाद हैं हम.
- फैज शाकिर
जहाँ लहू की बारिश होती हो,
जहाँ खून से गलियां लथपथ हों ,
हिन्दू मुस्लिम आपस में जहां अब भी लड़ते रहते हों,
इंसानों के गोश्त जहाँ हैवानों से भी सस्ते हों,
जहाँ सरकार गहरी नींद में सोइ हो ,
जहाँ जालिम तख्त पर बैठे हों,
जहाँ मजलूमों की खैर नहीं ,
जहाँ रात की कोई सहर नही ,
जहाँ पाँव से चिमटी जंजीरे हों,
जहाँ आवाजों पर पहरे हों,
ऐ अहल-ए-वतन अब झाँक कर मेरी आँखों में ,
बस इक बार कहो क्या आजाद हैं हम.
- फैज शाकिर
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