कभी था जो जम्हूरियत का अलंबरदार,
अब वह इमरजेंसी की बात करता है,
रहनुमा जिस पर लाजिम था कि वह बात करें भूख और गरीबी की,
अब वह मजहब की बात करता है,
अखबार पढ़ने का दिल नहीं करता,
मीडिया अब हमारी नहीं तख्तनशीनों की बात करता है.
– फ़ैज़ शाकिर
अब वह इमरजेंसी की बात करता है,
रहनुमा जिस पर लाजिम था कि वह बात करें भूख और गरीबी की,
अब वह मजहब की बात करता है,
अखबार पढ़ने का दिल नहीं करता,
मीडिया अब हमारी नहीं तख्तनशीनों की बात करता है.
– फ़ैज़ शाकिर
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