जो हर बात पर कहते थे हम तुम बिन पागल हो जाएंगे ,
वह मेरे पागल हो जाने पर न जाने क्यों खामोश हैं .
भूल गए वह कस्मे वादे भूल गए वह वसूले मुहब्बत,
मगर मेरी आँखों की नींदे ना जाने मुझसे ही क्यों नाराज हैं.
जला दिए होंगे उसने अब तक शायद मेरे सारे खत,
मगर मुद्दत से उनकी एक तस्वीर पुरानी अब भी मेरे पास है
- फैज़ शाकिर
वह मेरे पागल हो जाने पर न जाने क्यों खामोश हैं .
भूल गए वह कस्मे वादे भूल गए वह वसूले मुहब्बत,
मगर मेरी आँखों की नींदे ना जाने मुझसे ही क्यों नाराज हैं.
जला दिए होंगे उसने अब तक शायद मेरे सारे खत,
मगर मुद्दत से उनकी एक तस्वीर पुरानी अब भी मेरे पास है
- फैज़ शाकिर
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