सुनो जाना,
मेरी एक दिली तमन्ना है,
के सपुर्द-ए-खाक होने पर भी,
तुम मेरे कब्र पर आना,
मोहब्बत पाक होती है,
यह वह गहरी बात है जाना,
के सब समझ नहीं सकते,
जमाने ने कब जुलेखा को समझा है,
के तुझको समझ लेंगे,
तो फिर एक इल्तजा तुमसे,
के जब आना तो घूंघट ओढ़ कर आना.
– फैज शाकिर
मेरी एक दिली तमन्ना है,
के सपुर्द-ए-खाक होने पर भी,
तुम मेरे कब्र पर आना,
मोहब्बत पाक होती है,
यह वह गहरी बात है जाना,
के सब समझ नहीं सकते,
जमाने ने कब जुलेखा को समझा है,
के तुझको समझ लेंगे,
तो फिर एक इल्तजा तुमसे,
के जब आना तो घूंघट ओढ़ कर आना.
– फैज शाकिर
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