Monday, 7 August 2017

जिंदगी क्या थी

जिंदगी क्या थी कुछ उलझनो के बादल थे ,
अब अश्क बनकर मुझे कोई रुलाए नहीं ,
उसका खंजर अभी तक मेरे पास है ,
अब कोई कातिल मुझे कत्लगाह दिखाएं नहीं .
इस जमाने को फैज़ मेरा यही दर्श ,
अब दरवेश को कोई यूं लौट आए नहीं,
खुदा करे कि अब उनकी याद आए,
एक मसलूब को यूं कोई सताए नहीं .
– फैज शाकिर

No comments:

Post a Comment