पा – बजोला ही सही,
कूचा- ए- दिलदार में जाने की ख्वाहिश अब भी है.
कूचा- ए- दिलदार में जाने की ख्वाहिश अब भी है.
पहले चिराग -ए – शब था, अब चिराग -ए – सहर हूं,
मगर उसका इंतजार अब भी है.
मगर उसका इंतजार अब भी है.
सरापा दर्द हूं पर शिकवा नहीं मुझको उससे फैज़,
मेर सेहरा में उसके कदमों के निशान अब भी हैं.
मेर सेहरा में उसके कदमों के निशान अब भी हैं.
– फैज़ शाकिर
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