लौटना चाहूं भी तो कैसे लौटूं ,
साहिल पर अब कोई सफीना ना रहा,
मुसलसल शिद्दतो से इस तरह गुजरा हूं फैज़,
के जैसे मैं पत्थर हो गया आदमी ना रहा,
दौरे हाजिर में सब मीर जाफर हो गए,
अब कोई टीपू ना रहा कोई सिराजुद्दौला ना रहा,
सजायाफ्ता कैदी सफेदपोशों से बेहतर है,
के अब उसका कोई गुनाह ना रहा ,
मैंने जिन के वास्ते की अपनी जिंदगी तबाह ,
वह मेरे महरम ना रहे मैं उनका मोहतरम ना रहा.
– फैज शाकिर
साहिल पर अब कोई सफीना ना रहा,
मुसलसल शिद्दतो से इस तरह गुजरा हूं फैज़,
के जैसे मैं पत्थर हो गया आदमी ना रहा,
दौरे हाजिर में सब मीर जाफर हो गए,
अब कोई टीपू ना रहा कोई सिराजुद्दौला ना रहा,
सजायाफ्ता कैदी सफेदपोशों से बेहतर है,
के अब उसका कोई गुनाह ना रहा ,
मैंने जिन के वास्ते की अपनी जिंदगी तबाह ,
वह मेरे महरम ना रहे मैं उनका मोहतरम ना रहा.
– फैज शाकिर
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