सहाफियों के जमीर को अब कोई जगा दे,
जहाने-नौ के हर अखबार को अब कोई मजलूमों की आवाज बना दे,
जिनमें हो इतनी क़ुव्वत कि हिटलर सरकार गिरा दें,
दिल्ली के तख्तो ताज को जो पल में हिला दें.
जम्हूरियत को फना होने से अब कोई बचा ले,
हर अख़बार सम्पादक का अब कोई गणेश शंकर विद्यार्थी को बना दे,
जिन्हें ना मालूम हो की ईमान की कीमत 'फैज',
उन्हें अब कोई पीर मोहम्मद मुनीस के बारे में बता दे.
- फैज शाकिर
जहाने-नौ के हर अखबार को अब कोई मजलूमों की आवाज बना दे,
जिनमें हो इतनी क़ुव्वत कि हिटलर सरकार गिरा दें,
दिल्ली के तख्तो ताज को जो पल में हिला दें.
जम्हूरियत को फना होने से अब कोई बचा ले,
हर अख़बार सम्पादक का अब कोई गणेश शंकर विद्यार्थी को बना दे,
जिन्हें ना मालूम हो की ईमान की कीमत 'फैज',
उन्हें अब कोई पीर मोहम्मद मुनीस के बारे में बता दे.
- फैज शाकिर
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