Friday, 18 August 2017

तभी तुम आजाद कहलाओगे

क्या अब भी तुम इस उम्मीद में बैठे हो के कोई मसीहा आएगा,
जंजीरें तुम्हारी तोडेगा, तुमको आजाद कराएगा.
या तुम  मुंतज़िर हो किसी मूसा के ,
कि वह आएगा ,
बहरे अहमर मे तुम्हारे लिए एक नयी राह बनाएगा ,
इस दौर के फिरौन के जुल्मो सितम से तुम को आजाद कराएगा.
लेकिन क्या तुमने कभी पेड़ों  से झाँकते हुए सफेद चाँद को देखा है ,
वह अपने वजूद की जंग रोज लड़ता है ,
वह कब किसी मसीहा का इंतजार करता है.
उस सफेद चाँद की तरह तुमको भी अपनी मदद खुद ही करनी होगी ,
तुमको भी अपनी जंग खुद ही लडनी होगी ,
तुमको भी अपनी जंजीरें खुद ही तोड़नी होंगी,
तभी तुम आजाद फिजा में सांस ले पाओगे ,
तभी तुम आजाद  कहलाओगे.
- फैज़ शाकिर

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