क्या अब भी तुम इस उम्मीद में बैठे हो के कोई मसीहा आएगा,
जंजीरें तुम्हारी तोडेगा, तुमको आजाद कराएगा.
या तुम मुंतज़िर हो किसी मूसा के ,
कि वह आएगा ,
बहरे अहमर मे तुम्हारे लिए एक नयी राह बनाएगा ,
इस दौर के फिरौन के जुल्मो सितम से तुम को आजाद कराएगा.
जंजीरें तुम्हारी तोडेगा, तुमको आजाद कराएगा.
या तुम मुंतज़िर हो किसी मूसा के ,
कि वह आएगा ,
बहरे अहमर मे तुम्हारे लिए एक नयी राह बनाएगा ,
इस दौर के फिरौन के जुल्मो सितम से तुम को आजाद कराएगा.
लेकिन क्या तुमने कभी पेड़ों से झाँकते हुए सफेद चाँद को देखा है ,
वह अपने वजूद की जंग रोज लड़ता है ,
वह कब किसी मसीहा का इंतजार करता है.
उस सफेद चाँद की तरह तुमको भी अपनी मदद खुद ही करनी होगी ,
तुमको भी अपनी जंग खुद ही लडनी होगी ,
तुमको भी अपनी जंजीरें खुद ही तोड़नी होंगी,
तभी तुम आजाद फिजा में सांस ले पाओगे ,
तभी तुम आजाद कहलाओगे.
- फैज़ शाकिर
वह अपने वजूद की जंग रोज लड़ता है ,
वह कब किसी मसीहा का इंतजार करता है.
उस सफेद चाँद की तरह तुमको भी अपनी मदद खुद ही करनी होगी ,
तुमको भी अपनी जंग खुद ही लडनी होगी ,
तुमको भी अपनी जंजीरें खुद ही तोड़नी होंगी,
तभी तुम आजाद फिजा में सांस ले पाओगे ,
तभी तुम आजाद कहलाओगे.
- फैज़ शाकिर
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