मैं अपने शहर में भी चलूं तो दबे पांव चलूं,
ना जाने कब कौन कहां घात लगाकर बैठा हो,
ना जाने कब कौन मुझ पर वार करे,
दैरो हरम के झगड़ों के सबब ना जाने कब ,
यह शहर धुआं धुआं कर जल उठे,
मैं इंसान हूं ,
न हिंदू हूं न मुसलमान हूं,
मेरे दो बच्चे हैं , एक बीवी है ,
एक बीमार मां और एक बूढा बाप,
न जाने कैसे अब कारोबार चले,
अब मैं कैसे अपने शहर के गलियों में चलूं,
मैं जीयूं भी तो अब डर डर कर जीयूं.
- फैज शाकिर
ना जाने कब कौन कहां घात लगाकर बैठा हो,
ना जाने कब कौन मुझ पर वार करे,
दैरो हरम के झगड़ों के सबब ना जाने कब ,
यह शहर धुआं धुआं कर जल उठे,
मैं इंसान हूं ,
न हिंदू हूं न मुसलमान हूं,
मेरे दो बच्चे हैं , एक बीवी है ,
एक बीमार मां और एक बूढा बाप,
न जाने कैसे अब कारोबार चले,
अब मैं कैसे अपने शहर के गलियों में चलूं,
मैं जीयूं भी तो अब डर डर कर जीयूं.
- फैज शाकिर
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