मुख्तलिफ सोच कोई मजहबी लड़ाई तो नहीं है,
चलो अब लौट भी आओ की एक मुद्दत सी हुई है,
मरहला तय करते करते अब मैं थकने सा लगा हूं ,
मैं भी मिट्टी से बना हूं शायद तुम भी मिट्टी से बने हो.
– फैज शाकिर
चलो अब लौट भी आओ की एक मुद्दत सी हुई है,
मरहला तय करते करते अब मैं थकने सा लगा हूं ,
मैं भी मिट्टी से बना हूं शायद तुम भी मिट्टी से बने हो.
– फैज शाकिर
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