मोमबत्तियां जलाने से जुल्म कम नहीं हो होते,
हर शक्स को अपनी जंग खुद ही लड़नी पड़ती है,
रात तो अब भी होती है मगर नींद अब नहीं आती ,
करवटें जो बदलूं तो उसकी याद आती है,
हर तरफ अंधेरा है हर तरफ खामोशी है,
मगर मुझे न जाने क्यों रोशनी की एक किरण अब भी दिखाई देती है,
_ फैज शाकिर
हर शक्स को अपनी जंग खुद ही लड़नी पड़ती है,
रात तो अब भी होती है मगर नींद अब नहीं आती ,
करवटें जो बदलूं तो उसकी याद आती है,
हर तरफ अंधेरा है हर तरफ खामोशी है,
मगर मुझे न जाने क्यों रोशनी की एक किरण अब भी दिखाई देती है,
_ फैज शाकिर
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