कलम उठा ही लिया है ,
तो कुछ तो लिखना पड़ेगा,
सितम जब हद से गुजर जाए,
तो चीखना भी पड़ेगा.
जहर का प्याला हो सामने फिर भी,
तुम्हें अब अपने लबों को खोलना ही पड़ेगा,
गए दिन अब खामोश रहने के,
अब तो तुम्हें सुकरात बनना ही पड़ेगा.
इंकलाब -ए- फ्रांस पढ़ भी लो यारों,
के जालिमों से तुम्हें अपने हक के लिए लड़ना ही पड़ेगा,
उन्हें अगर अपनी ताकतों पे गुरुर ‘फैज़’,
तो तुम्हें भी अपने खुदा पे भरोसा करना पड़ेगा.
– फैज़ शाकिर
तो कुछ तो लिखना पड़ेगा,
सितम जब हद से गुजर जाए,
तो चीखना भी पड़ेगा.
जहर का प्याला हो सामने फिर भी,
तुम्हें अब अपने लबों को खोलना ही पड़ेगा,
गए दिन अब खामोश रहने के,
अब तो तुम्हें सुकरात बनना ही पड़ेगा.
इंकलाब -ए- फ्रांस पढ़ भी लो यारों,
के जालिमों से तुम्हें अपने हक के लिए लड़ना ही पड़ेगा,
उन्हें अगर अपनी ताकतों पे गुरुर ‘फैज़’,
तो तुम्हें भी अपने खुदा पे भरोसा करना पड़ेगा.
– फैज़ शाकिर
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