तू जो रो दे तो एक दरिया हो जाए,
ये ख़ाक हैं , ख़ाक में मिल जायेंगे,
सितम करने वाले ,खुद फना हो जाएंगे,
मां तेरे आंसू यूं रायगां ना जाएंगे.
आसमां भी है शर्मिंदा इस बात पर,
क्यों नहीं वह रो पड़ा उस रात को,
छा रही थी हर तरफ जब काली घटा,
रो पड़ा था जिस घड़ी दीवार ए हिंदुस्तान.
– फैज़ शाकिर
ये ख़ाक हैं , ख़ाक में मिल जायेंगे,
सितम करने वाले ,खुद फना हो जाएंगे,
मां तेरे आंसू यूं रायगां ना जाएंगे.
आसमां भी है शर्मिंदा इस बात पर,
क्यों नहीं वह रो पड़ा उस रात को,
छा रही थी हर तरफ जब काली घटा,
रो पड़ा था जिस घड़ी दीवार ए हिंदुस्तान.
– फैज़ शाकिर
No comments:
Post a Comment